कहानियाँ 5

1गगरी आधी भरी या खाली

एक बुजुर्ग ग्रामीण के पास एक बहुत ही सुंदर और शक्तिशाली घोड़ा था. वह उससे बहुत प्यार करता था. उस घोड़े को खरीदने के कई आकर्षक प्रस्ताव उसके पास आए, मगर उसने उसे नहीं
बेचा.

एक रात उसका घोड़ा अस्तबल से गायब हो गया. गांव वालों में से किसी ने कहा “अच्छा होता कि तुम इसे किसी को बेच देते. कई तो बड़ी कीमत दे रहे थे. बड़ा नुकसान हो गया.”
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परंतु उस बुजुर्ग ने यह बात ठहाके में उड़ा दी और कहा – “आप सब बकवास कर रहे हैं. मेरे लिए तो मेरा घोड़ा बस अस्तबल में नहीं है. ईश्वर इच्छा में जो होगा आगे देखा जाएगा.”

कुछ दिन बाद उसका घोड़ा अस्तबल में वापस आ गया. वो अपने साथ कई जंगली घोड़े व घोड़ियाँ ले आया था.
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ग्रामीणों ने उसे बधाईयाँ दी और कहा कि उसका तो भाग्य चमक गया है.

परंतु उस बुजुर्ग ने फिर से यह बात ठहाके में उड़ा दी और कहा – “बकवास! मेरे लिए तो बस आज मेरा घोड़ा वापस आया है. कल क्या होगा किसने देखा है.”

अगले दिन उस बुजुर्ग का बेटा एक जंगली घोड़े की सवारी करते गिर पड़ा और उसकी टाँग टूट गई. लोगों ने बुजुर्ग से सहानुभूति दर्शाई और कहा कि इससे तो बेहतर होता कि घोड़ा वापस ही नहीं आता. न वो वापस आता और न ही ये दुर्घटना घटती.

बुजुर्ग ने कहा – “किसी को इसका निष्कर्ष निकालने की जरूरत नहीं है. मेरे पुत्र के साथ एक हादसा हुआ है, ऐसा किसी के साथ भी हो सकता है, बस”
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कुछ दिनों के बाद राजा के सिपाही गांव आए, और गांव के तमाम जवान आदमियों को अपने साथ लेकर चले गए. राजा को पड़ोसी देश में युद्ध करना था, और इसलिए नए सिपाहियों की भरती जरूरी थी. उस बुजुर्ग का बेटा चूंकि घायल था और युद्ध में किसी काम का नहीं था, अतः उसे नहीं ले जाया गया.

गांव के बचे बुजुर्गों ने उस बुजुर्ग से कहा – “हमने तो हमारे पुत्रों को खो दिया. दुश्मन तो ताकतवर है. युद्ध में हार निश्चित है. तुम भाग्यशाली हो, कम से कम तुम्हारा पुत्र तुम्हारे साथ तो है.”

उस बुजुर्ग ने कहा – “अभिशाप या आशीर्वाद के बीच बस आपकी निगाह का फ़र्क होता है. इसीलिए किसी भी चीज को वैसी निगाहों से न देखें. निस्पृह भाव से यदि चीजों को होने देंगे तो दुनिया खूबसूरत लगेगी.”

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2प्रतिबद्धता

थुम्बा में रॉकेट प्रक्षेपण स्टेशन पर वैज्ञानिक एक दिन में लगभग 12 से 18 घंटे के लिए काम करते थे. इस परियोजना पर काम कर रहे वैज्ञानिकों कि संख्या सत्तर के लगभग थी . सभी वैज्ञानिक वास्तव में काम के दबाव और अपने मालिक की मांग के कारण निराश थे, लेकिन हर कोई उससे वफादार था और नौकरी छोड़ने के बारे में नहीं सोचता था .
एक दिन, एक वैज्ञानिक अपने बॉस के पास आया था और उनसे कहा - सर, मैं अपने बच्चों को वादा किया है कि मैं उन्हें हमारी बस्ती में चल रही प्रदर्शनी दिखाने के लिए ले जाऊँगा . तो मैं 5 30 बजे कार्यालय छोड़ना चाहता हूँ .
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उनका बॉस ने कहा - ठीक है, तुम्हे आज जल्दी कार्यालय छोड़ने के लिए अनुमति दी जाती है.

वैज्ञानिक ने काम शुरू कर दिया. उसने दोपहर के भोजन के बाद भी अपना काम जारी रखा. हमेशा की तरह वह इस हद तक अपने काम में मशगूल था कि जब उसने अपनी घड़ी में देखा कि समय रात्रि 8.30 बज चुके थे . अचानकउसे अपना वह वादा जो उसने अपने बच्चों को किया था याद आया . उसने अपने मालिक के लिए देखा, वह वहाँ नहीं था. उसे सुबह ही बताया था, उसने सब कुछ बंद कर दिया और घर के लिए चल दिया.

अपने भीतर गहराई में, वह अपने बच्चों को निराश करने के लिए दोषी महसूस कर रहा था.
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वह घर पहुंच गया. बच्चे वहाँ नहीं थे पत्नी अकेली हॉल में बैठी थी और पत्रिकाओं को पढ़ने में मशगूल थी . स्थिति विस्फोटक थी , उसे लगा कोई भी बात करने पर वह उस पर फट पड़ेगी . उसकी पत्नी ने उससे पूछा - क्या आप के लिए कॉफीलाऊं या मैं सीधे रात्रिभोज की व्यवस्था करू अगर आप भूखे है आपकी पसंद का भोजन बना है.

आदमी ने कहा - अगर तुम भी पियो तो मैं भी कॉफी लूँगा , लेकिन बच्चे कहां हैं ?? पत्नी ने कहा - आपको नहीं पता है आपका प्रबंधक 5 15 बजे आया और प्रदर्शनी के लिए बच्चों को ले गया.

असल में हुआ क्या था
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मालिक ने उसे दी गई अनुमति के अनुसार उसे 5,00 बजे उसे गंभीरता से काम करते देखा और सोचा कि यह व्यक्ति काम को नहीं छोड़ सकता है , लेकिन उसने अपने बच्चों से वादा किया है कि वो उन्हें प्रदर्शनी के लिए लें जाएगा . तो वह उन्हें प्रदर्शनी के लिए लेकर गया.

मालिक ने हर बार यही नहीं किया था पर जो एक बार किया उससे उस वैज्ञानिक कि प्रतिबद्धता हमेशा के लिए स्थापित हो गयी
यही कारण है कि थुम्बा में सभी वैज्ञानिकों ने उनके मालिक के तहत काम जारी रखा जबकि तनाव जबरदस्त था.

क्या आप अनुमान लगा सकते हैं वो मेनेजर कौन था


जी हाँ वो हमारे भूतपूर्व राष्ट्रपति श्री ए पी जे अब्दुल कलाम थे

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