कहानियाँ 3

1अमूल्य निधि
भगवान विष्णु के सामने भीड़ लगी थी। अपने आसन पर विराजमान प्रभु सभी प्राणियों को त्रैलोक्य की संपदा बांट रहे थे। उन्होंने संकल्प किया था कि आज किसी को खाली हाथ न जाने देंगे। धन - धान्य , संतान , वैभव - विलास , यश , वह सब कुछ खुले हाथों से दे रहे थे। बैकुंठ का कोष खाली होते देख लक्ष्मी से रहा नहीं गया और वह दौड़कर विष्णु का हाथ थामकर बोलीं , ' हे प्रभु। यह आप क्या कर रहे हैं। यदि आप मुक्त भाव से यों ही संपदा लुटाते रहे तो बैकुंठ में कुछ भी
नहीं बचेगा। ऐसे में तो हमारा सुख - चैन सब छिन जाएगा। '

लक्ष्मी की बात पर विष्णु मंद - मंद मुस्कराने लगे और बोले , ' देवी , इसके लिए चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। धन - संपदा लुटाने से हमारा सुख पहले की तरह ही बना रहेगा। '

लक्ष्मी हैरानी से बोलीं , ' कैसे प्रभु ? सब कुछ तो आपने लुटा दिया। '

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विष्णु बोले , ' हां , सब कुछ लुटाने पर भी एक अमूल्य निधि ऐसी है जो हमारे पास सुरक्षित है और उसे यहां उपस्थित नर , किन्नर , गंधर्व , विद्याधर एवं असुर में से किसी ने भी नहीं मांगा है। वह निधि ऐसी है कि उससे धन - संपदा स्वयं खड़ी हो जाती है और यदि वह नहीं है तो धन - संपदा , वैभव का कोई मोल नहीं रह जाता।

लक्ष्मी फिर बोलीं , ' प्रभु , पहेलियां न बुझाइए। बताइए वह है क्या ?'

विष्णु बोले , ' वह निधि है - शांति। शांति के बिना धन - संपदा , वैभव - विलास का कोई अर्थ नहीं है। '

विष्णु की बात सुनकर लक्ष्मी संतुष्ट हो गईं और बोलीं , ' हां प्रभु , आप सही कह रहे हैं। अब मैं निश्चिंत हूं। '

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2बुरे इरादे छुपाए नहीं छुपते

एक बार की बात है. एक गरीब बुढ़िया एक गांव से दूसरे गांव पैदल जा रही थी. उसके सिर पर एक भारी बोझ था. वह बेचारी हर थोड़ी दूर पर थक कर बैठ जाती और सुस्ताती. इतने में एक घुड़सवार पास से गुजरा. बुढ़िया ने उस घुड़सवार से कहा कि क्या वो अपने घोड़े पर उसका बोझा ले जा सकता है. घुड़सवार ने मना कर दिया और कहा – बोझा तो मैं भले ही घोड़े पर रख लूं, मगर तुम तो बड़ी धीमी रफ्तार में चल रही हो. मुझे तो देर हो जाएगी.

थोड़ी दूर आगे जाने के बाद घुड़सवार के मन में आया कि शायद बुढ़िया के बोझे में कुछ मालमत्ता हो. वो बुढ़िया की सहायता करने के नाम पर बोझा घोड़े पर रख लेगा और सरपट वहाँ से भाग लेगा. ऐसा सोचकर वह वापस बुढ़िया के पास आया और बुढ़िया से कहा कि वो उसकी सहायता कर प्रसन्न होगा.

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अबकी बुढ़िया ने मना कर दिया. घुड़सवार गुस्से से लाल-पीला हो गया. उसने बुढ़िया से कहा, अभी तो थोड़ी देर पहले तुमने मुझसे बोझा ढोने के लिए अनुनय विनय किया था! और अभी थोड़ी देर में ये क्या हो गया कि तुमने अपना इरादा बदल दिया?

‘उसी बात ने मेरा इरादा बदला जिसने तुम्हारा इरादा बदल दिया.’ बुढ़िया ने एक जानी पहचानी मुस्कुराहट उसकी ओर फेंकी और आगे बढ़ चली.


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