अधूरा प्यार
"ओए...मेरी बकरी को क्यूँ मारा?" वो गुस्से में चिल्लाई।
"मेरी रोटियाँ खा गई। मैंने भी गुस्से में कहा।
" जानवर है किवाड़ खुले छोड़ेगा तो खाएगी, और बना ले ।" उसमे दोनों हाथ कमर के लगाते हुए तुनक कर कहा।
" कैसे बना लूँ? कॉलेज का टाइम हो गया है।" कहते हुए मेरी आँखों में अपने आप ही आँसू आ गए।
"अरे..अरे.. रो मत, तू तैयार हो। मैं बना देती हूँ।"
उसे दया आ गई।
यह पहली मुलाक़ात थी उसकी और मेरी। गाँव में कॉलेज नही था इस कारण पढ़ने के लिए शहर आया था। यह किसी रिश्तेदार का एक कमरे का मकान था।
बिना किराए का था। शहर के बाहर था। आस-पास भी गरीब तबके के घर थे।
सब काम अकेले ही करने पड़ते थे। खाना-बनाना, कपड़े धोना, घर की साफ़-सफाई करना।
कुछ ही दिनों में पता चल गया कि क्यों बहिने ताज़ा पोछा लगाए फर्श पर गंदे पैर रखने पर चिल्लाती थी, क्यों गन्दे कपड़े देखकर माँ गुस्सा करती थी?